क्या है इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स? ???????

                        


 एक ऐसी कॉन्सेप्ट है जिसके तहत इंटरनेट से जुड़े खुद की सोच-समझ रखने वाले इलेक्ट्रॉनिक उपकरण इंटरनेट के माध्यम से समय से पहले कुछ काम कर सकते हैं। इसे की दुनिया में नॉन-स्क्रीन कम्प्यूटिंग भी कहा जा रहा है, क्योंकि ये उपकरण एक कम्प्यूटर की तरह सोच तो सकते हैं, लेकिन इनमें कम्प्यूटर की तरह कोई स्क्रीन नहीं है। 
इस विचार का उदय 1982 में कार्नेगी मेलन यूनिवर्सिटी के एक लैब में हुआ था, जब वहाँ के शोधार्थियों ने एक कोक मशीन को इंटरनेट से जोड़ा था। यह मशीन अपने भीतर रखे गए पेय पदार्थ की बोतलों की संख्या का हिसाब रख सकती थी व उनके तापमान को माप लेती थी। वहाँ से चलकर अब हम एक ऐसे मुकाम पर खड़े हैं, जहाँ 2020 तक ऐसे समझदार उपकरणों की संख्या 26 अरब हो जाने का अनुमान है, जो स्वयं अपना संचालन करेंगे।
 
तो इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स हमारे जीवन में क्या नवीनता ला रहा है? उदाहरण के लिए कितना अच्छा होगा यदि कोई फ़्रिज अपने भीतर झाँककर स्वयं ही समाप्त हो चुके सामान का ऑर्डर किसी स्टोर को दे दे या फिर आपकी गाड़ी को देखकर सिक्योरिटी कैमरा आपके मकान के सिक्योरिटी सिस्टम को गराज का ताला खोल देने और शटर के मैकेनिज़्म को शटर खोलने तथा गराज की बत्तियों को ऑन हो जाने का आदेश दे सके। ऐसी कारों के प्रोटोटाइप तो बन ही गए हैं, जो आपको ऑफ़िस के दरवाज़े पर उतारकर खुद ही पार्किंग स्पेस में जाकर पार्क हो जाएँ और आपके द्वारा मोबाइल से एक संकेत किए जाने पर वहाँ से आकर आपकी सेवा में हाज़िर हो जाएँ।यह सुनने में किसी साइंस फ़िक्शन वाली हॉलीवुड फ़िल्म का प्लॉट लग सकता है, लेकिन अब हम ऐसे उपकरणों के बहुत नज़दीक पहुँच चुके हैं, बल्कि इस तरह के कई उपकरण तो वास्तविक दुनिया में कदम रख भी चुके हैं। उदाहरण के लिए आज ऐसे उपकरण वास्तव में बाज़ार में मौजूद हैं जिन्हें अपने मोबाइल फ़ोन से नियंत्रित करके आप अपने घर के किसी कमरे के लाइट-पंखे या एसी बंद या चालू कर सकते हैं।

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